मातृस्वभाव महिताम् हरितुल्य शीलाम्
लोकस्य मङ्गळकरीम् रमणीय रूपाम्
पद्मालयाम् भगवतीम् शरणम् प्रपद्ये ॥१॥
श्रीयादनामकमुनींद्रतपोविशेषात्
श्रीयादशैलशिखरे सतत प्रकाशौ
भक्तानुरागभरितौ भवरोग वैद्यौ
लक्ष्मीनृसिंह चरणौ शरणम् प्रपद्ये ॥२॥
देवस्वरूप विकृतावपिनैजरुपौ
सर्वोत्तरौ सुजन सरु निशेव्यमानौ
सर्वस्य जीवनकरौ सद्रृशस्वरूपौ
लक्ष्मीनृसिंह चरणौ शरणम् प्रपद्ये ॥३॥
लक्ष्मीशते प्रपदने सहकारभूतौ
त्वत्तोप्यति प्रियतमौ शरणागतानाम्
रक्षाविचक्षण पटू करुणालयौ श्री
लक्ष्मीनृसिंह चरणौ शरणम् प्रपद्ये ॥४॥
प्रह्लाद पौत्र बलिदानव भूमिदान
कालप्रकाशित निजान्य जघन्य भावौ
लोकप्रमाण करणौ शुभदौ सुरानाम्
लक्ष्मीनृसिंह चरणौ शरणम् प्रपद्ये ॥५॥
कायादवीय शुभमानस राजहंसौ
वेदान्त कल्पतरु पल्लव टल्लि जौतौ
सद्भक्त मूलधनमित्युदित प्रभावौ
लक्ष्मीनृसिंह चरणौ शरणम् प्रपद्ये ॥६॥
॥इति श्री वंगीपुरम् नरसिंहाचार्य विरचितं
श्री यादगिरि लक्ष्मीनृसिंह प्रपत्तिः समाप्तं ॥