गणराज आज सुप्रसन्न होई तूं मला।
करितों मी पंचारति मोरया तुला॥धृ.॥
मुषकवहनि बॆसुनिया येई धावुनि।
मममस्तकीं वरदहस्त्त तुवां ठेवूनी॥
पूर्ण करीं मम हेतु दयार्द होऊनी॥
लावी तव भजनी आजि दास विठ्ठला॥१॥
गणराज आज सुप्रसन्न होई तूं मला।
करितों मी पंचारति मोरया तुला॥धृ.॥
मुषकवहनि बॆसुनिया येई धावुनि।
मममस्तकीं वरदहस्त्त तुवां ठेवूनी॥
पूर्ण करीं मम हेतु दयार्द होऊनी॥
लावी तव भजनी आजि दास विठ्ठला॥१॥