रामचरितमानस

गोस्वामी तुलसीदासने रामचरितमानस ग्रन्थकी रचना दो वर्ष , सात महीने , छ्ब्बीस दिनमें पूरी की । संवत्‌ १६३३ के मार्गशीर्ष शुक्लपक्ष में रामविवाहके दिन सातों काण्ड पूर्ण हो गये।


बालकाण्ड श्लोक

वर्णानामर्थसंघानां रसानां छन्दसामपि । मङुलानां च कर्त्तारौ वन्दे वाणीविनायकौ ॥१॥

भवानीशङुरौ वन्दे श्रद्धाविश्वासरुपिणौ । याभ्यां विना न पश्यन्ति सिद्धा : स्वान्त :स्थ्मीश्वरम् ‍ ॥२॥

वन्दे बोधमयं नित्यं गुरुं शङुररुपिणम् ‍ । यमाश्रितो हि वक्रोऽपि चन्द्र : सर्वत्र वन्द्यते ॥३॥

सीतारामगुणामपुण्यारण्यविहारिणौ । वन्दे विशुद्धविज्ञानी कवीश्वरकपीश्वरौ ॥४॥

उभ्दवस्थितिसंहारकारिणी ल्केशहारिणीम् ‍ । सर्वश्रेयस्करीं सीतां नतोऽहं रामवल्लभाम् ‍ ॥५॥

यन्मायावशवर्त्ति विश्वमखिलं ब्रह्मदिदेवासुरा यत्सत्त्वादमृषैव भाति सकलं रज्जौ यथाहेर्भ्रम : ।

यत्पादप्लवमेकमेव हि भवाम्भोस्तिर्षावतां वन्देऽहं तमशषकारणपरं रामाख्यमीशं हरिम् ‍ ॥६॥

नानापुराणनिगमागमसम्मतं यद् ‍ रामायणे निगदितं क्वचिदन्यतोऽपि ।

स्वान्त : सुखाय तुलसी रघुनाथनाथाभाषानिबन्धमतिमञ्जुलमातनोति ॥७॥

जो सुमिरत सिधि होइ गन नायक करिबर बदन । करउ अनुग्रह सोइ बुद्धि रासि सुभ गुन सदन ॥१॥

मूक होइ बाचाल पंगु चढि गिरिबर गहन । जासु कृपाँ सो दयाल द्रवउ सकल कलि मल दहन ॥२॥

नील सरोरुह स्याम तरुन अरुन बारिज नयन । करउ सो मम उर धाम सदा छीरसागर सयन ॥३॥

कुंद इंदु सम देह उमा रमन करुना अयन । जाहि दीन पर नेह करउ कृपा मर्दन मयन ॥४॥

बंदउँ गुरु पद कंज कृपा सिंधु नररुप हरि । महामोह तम पुंज जासु बचन रबि कर निकर ॥५॥

चौपाला -

बंदउँ गुरु पद पदुम परागा । सुरुचि सुबास सरस अनुरागा ॥

अमिअ मूरियम चूरन चारु । समन सकल भव रुज परिवारु ॥१॥

सुकृति संभु तन बिमल बिभूती । मंजुल मंगल मोद प्रसूती ॥

जन मन मंजु मुकुर मल हरनी । किएँ तिलक गुन गन बस करनी ॥२॥

श्रीगुर पद नख मनि गन जोती । सुमिरत दिब्य दृष्टि हियँ होती ॥

दलन मोह तम सो सप्रकासू । बडे भाग उर आवइ जासू ॥३॥

उघरहि बिमल बिलोचन ही के । मिटहिं दोष दुख भव रजनी के ॥

सूझहि राम चरित मनि मानिक । गुपुत प्रगट जहँ जो जेहि खानिक ॥४॥