भवनभास्कर

वास्तुविद्याके अनुसार मकान बनानेसे कुवास्तुजनित कष्ट दूर हो जाते है ।


चौथा अध्याय

चौथा अध्याय

भूमि - परीक्षा

(१) जिस भूमिपर हरे - भरे वृक्ष, पौधे, घास आदि हों और खेतीकी उपज भी अच्छी होती हो, वह भूमि जीवित है । ऊसर, चूहेके बिल, बांबी आदिसे युक्त, ऊबड़ - खाबड, काटेदार पौधों एवं वृक्षोंवाली भूमि मृत है । मृत भूमि त्याज्य है ।

ऊसर भूमि धनका नाश करनेवाली है । चूहेके बिलोंवाली भूमि भी धनका नाश करनेवाली है । बाबी ( दीमक ) - वाली भूमि पुत्रका नाश करनेवाली है । फटी हुई भूमि मरण देनेवाली है । शल्यों ( हड्डियों ) से युक्त भूमि क्लेश देनेवाली है । ऊंची - नीची भूमि शत्रु बढ़ानेवाली है । गड्ढोंवाली भूमि विनाश करनेवाली है । टीलोंवाली करनेवाली है । दुर्गन्धयुक्त भूमि पुत्रका नाश करनेवाली है ।

( २ ) भूखण्डके मध्यमें एक हाथ लम्बा, एक हाथ चौड़ा और एक हाथ गहरा गड्‍ढा खोदें * । फिर खोदी हुई सारी मिट्टी पुनः उसी गड्ढेमें भरें । यदि गड्‍ढेमें भरें । यदि गड्‍ढा भरनेसे मिट्टी शेष बच जाय तो वह श्रेष्ठ भूमि है । उस भुमिमें निवास करनेसे धन - सम्पत्तिकी वृद्धि होती है । यदि मिट्टी गड्ढेसे कम निकलती है तो वह अधम भूमि है । उस भूमिमें निवास करनेसे सुख - सौभाग्य एवं धन - सम्पत्तिकी हानि होती है ।

( ३ ) उपर्युक्त प्रकारसे गड्ढा खोदकर उसमें पानी भर दें । पानी भरकर उत्तर दिशाकी ओर सौ कदम चलें । लौटनेपर देखें । यदि गड्ढेमेम पानी उतना ही रहे तो वह श्रेष्ठ भूमि है । यदि पानी कुछ कम ( आधा ) रहे तो वह मध्यम भूमि है । यदि पानी बहुत कम रह जाय तो वह अधम भुमि है ।

( ४ ) उपर्युक्त प्रकारसे गड्‍ढा खोदकर उसमें सायंकाल पानी भर दें । प्रातःकाल देखें । यदि गड्‍ढेमें जल दीखे तो उस स्थानमें निवास करनेसे वृद्धि होगी । यदि गड्‍ढेमें कीचड़ दीखे तो उस स्थानमें निवास करनेसे मध्यम फल होगा । यदि गड्ढेमें दरार दीखे तो उस स्थानमें निवास करनेसे हानि होगी ।

( ५ ) भूखण्डंमें हल जुतवाकर सर्वबीज ( ब्रीहिम शाठीम मूँग, गेहूँ, सरसों तिल, जौ ) बो दें । यदि वे बीज तीन रातमें अंकुलित हों तो भूमि उत्तम है, पाँच रातमें अंकुरित हों तो भूमि मध्यम है और सात रातमें अंकुरित हों तो भूमि अधम है ।

( ६ ) एक हाथ गहरा गड्ढा खोदकर उसे सब ओरसे अच्छी तरह लीप - पोतकर स्वच्छ कर दें । फिर एक कच्चे पुरवेमें घी भरकर उसमें चारों दिशाओंकी ओर मुख करके चार बत्तियाँ जला दें और उसी गड्ढेमें रख दें । यदि पूर्व दिशाकी बत्ती अधिक समयतक जलती रहे तो उसे ब्राह्मणके लिये शुभ मानना चाहिये । इसी प्रकार क्रमशः उत्तर, पश्चिम और दक्षिणकी बत्तियोंको क्षत्रिय, वैश्य और शूद्रके लिये शुभ समझना चाहिये । यदि वह वास्तुदीपक चारों दिशाओंमें जलता रहे तो वहाँकी भूमि सभी वर्णोके लिये शुभ समझनी चाहिये ।

( ७ ) जिस भूमिसें गड्‍ढा खोदनेपर अथवा हल जोतनेपर भस्म, अंगार, हड्डियाँ, भूसी, केश, कोयला आदि निकलें, वह भूमि अशुभ होनेसे त्याज्य है । यदि भूमिसे लकड़ी निकले तो अग्निका भय, हड्डियाँ निकलें तो कुलका नाश, सर्प निकले तो चोरका भय, कोयला निकले तो रोग या मृत्यु, भूसी निकले तो धनका नाश होता है । यदि भूमिसे पत्थर, ईंट, कंकड़, शङ्ख आदि निकलें तो उस भूमिको शुभ समझना चाहिये ।

( ८ ) भविष्यपुराण ( मध्यम० १।९ ) - में आया है कि जलके ऊपर तथा मन्दिरके ऊपर रहनेके लिये घर नहीं बनवाना चाहिये ।

( ९ ) ब्राह्मणके लिये श्वेतवर्णा भूमि, क्षत्रियके लिये रक्तवर्णा भूमि शुभ होती है ।

( १० ) ब्राह्मणके लिये घृतके समान गन्धवाली, क्षत्रिय लिये रक्तके समान गन्धवाली, वैश्यके लिये अन्नके समान गन्धवाली और शूद्रके लिये मद्यके समान गन्धवाली भूमि शुभे होती है ।

( ११ ) ब्राह्मणके लिये मीठे स्वादवाली, क्षत्रियके लिये कषैले स्वादवाली, वैश्यके लिये खट्टे स्वादवाली और शूद्रके लिये कड़वे स्वादवाली मिट्टी शुभ होती है । मीठे स्वादवाली भूमि सब वर्णोंके लिये शुभ है ।