भवनभास्कर

वास्तुविद्याके अनुसार मकान बनानेसे कुवास्तुजनित कष्ट दूर हो जाते है ।


बारहवाँ अध्याय

बारहवाँ अध्याय

धन, ॠण, आय आदिके ज्ञानका उपाय

( १ ) घरकी चौडा़ईको लम्बाईसे गुणा करनेपर जो गुणनफल आता है, उसे ' पद ' कहते है । उस पदको ( छः स्थानोंमें रखकर ) क्रमशः ८,३,९,८,९,६ से गुणा करें और गुणनफलमें क्रमशः १२,८,८,२७,७,९ से भाग दें । फिर जो शेष बचे, वह क्रमशः धन, ऋण, आय, नक्षत्र, वार तथा अंश होते है ।

उदाहरणार्थ - घरकी चौडा़ई १५ हाथ और लम्बाई २५ हाथ है । इनको परस्पर गुणा करनेसे गुणनफल ३६५ पद हुआ । अब इसके धन, ॠण आदि इस प्रकार निकाले जायँगे -

अब इनका फल इस प्रकार समझना चाहिये -

धन -

यदि ऋणकी अपेक्षा धन अधिक हो तो वह घर शुभ होता है ।

ॠण -

यदि धनकी अपेक्षा ऋण अधिक हो तो वह घर अशुभ होता है ।

आय -

यह आठ प्रकारकी होती है - १. ध्वज २. धूम्र ३. सिंह ४. श्वान ५. वृक्ष ६. खर ७. गज और ८. उष्ट्र अथवा काक । यदि आय विषम ( १,३,५,७ ) हो तो शुभ होता है और सम ( २,४,६,८ ) हो तो अशुभ होता है ।

नक्षत्र -

घरका जो नक्षत्र हो, वहाँसे अपने नामके नक्षत्रतक गिनकर जो संख्या हो, उसमें ९ से भाग दें । यदि शेष ३ बचे तो धनका नाश, ५ बचे तो यशकी हानि और ७ बचे तो गृहकर्ताकी मृत्यु होती है । घरकी राशि और अपनी राशि गिननेपर परस्पर २, १२ हो तो धनकी हानि; ९,५ हो तो पुत्रकी हानि और ६,८ हो तो अनिष्ट होता है । अन्य संख्या हो तो शुभ समझाना चाहिये ।

वार तथा अंश -

सूर्य ( १ ) और मंगल ( ३ ) के वार तथा अंश हो तो उस घरमें अग्निभय होता है । अन्य वार तथा अंश होनेसे सम्पूर्ण अभीष्ट वस्तुऍं प्राप्त होती हैं ।

उपर्युक्त उदाहरामें सब वस्तुऍं शुभ हैं , केवल वार १ ( रवि ) अशुभ है, जिससे घरमें अग्निभय रहेगा ।

( २ ) घरकी लम्बाई - चौडा़ईके गुणनफल ( पद ) - को आठसे गुणा करे, फिर १२० से भाग दे तो घरकी आयुका ज्ञान होता है ।

( ३ ) घर और गृहस्वामीका एक नक्षत्र हो तो गृहस्वामीकी मृत्यु होती है ।

( ४ ) ध्वज आयमें गृहारम्भ करनेपर अधिक धन तथा कीर्ति मिलती है ।

धूम्र आयमें गृहारम्भ करनेपर भ्रम तथा शोक होता है ।

सिंह आयमें गृहारम्भ करनेपर विशेष लक्ष्मी तथा विजय प्राप्त होती है ।

श्वान आयमें गृहारम्भ करनेपर कलह व वैर होता है ।

वृष आयमें गृहारम्भ करनेपर धन - धान्यका लाभ होता है ।

खर आयमें गृहारम्भ करनेपर स्त्रीनाश तथा निर्धनता होती है ।

गज आयमें गृहारम्भ करनेपर पुत्रलाभ तथा सुख होता है ।

उष्ट्र आयमें गृहारम्भ करनेपर शून्यता तथा रोग होता है ।

( ५ ) ' ध्वज ' आय हो तो सब दिशाओंमें, ' सिंह ' आय हो तो पूर्व, दक्षिण, उत्तर दिशाओंमें, ' वृष' आय हो तो पश्चिम दिशामें और ' गज ' आय हो तो पूर्व और दक्षिण दिशामें मुख्य द्वार बनाना उत्तम होता है ।

( ६ ) ब्राह्मणके लिये ' ध्वज ' आय और पश्चिममें द्वार बनाना उत्तम है । क्षत्रियके लिये ' सिंह ' आय और उत्तरमें द्वार बनाना उत्तम है । वैश्यके लिये ' वृष ' आय और पूर्वमें द्वार बनाना उत्तम है । शूद्रके लिये ' गज ' आय और दक्षिणमें द्वार बनाना उत्तम है ।

( ७ ) जिस मकानकी लम्बाई बत्तीस हाथसे अधिक हो, उसमें आय आदिका विचार नहीं करना चाहिये ।