भवनभास्कर

वास्तुविद्याके अनुसार मकान बनानेसे कुवास्तुजनित कष्ट दूर हो जाते है ।


बीसवाँ अध्याय

बीसवाँ अध्याय

गृहमें जल - स्थान

( १ ) कुएँका स्थान -

यदि घरकी पूर्व दिशामें कुआँ हो तो ऐश्वर्यकी वृद्धि तथा पुष्टिकी प्राप्ति होती है ।

आग्नेय

दिशामें कुआँ हो तो भय, दुःख तथा पुत्रका विनाश होता है ।

दक्षिण

दिशामें कुआँ हो तो स्त्रीका विनाश, सन्तानकी हानि, भूमिका नाश तथा अदभूत रोग होता है ।

नैऋत्य

दिशामें कुआँ हो तो मृत्यु तथा बालकोंको भय होता है ।

पश्चिम

दिशामें कुआँ हो तो सम्पत्ति प्राप्त होती है ।

वायव्य

दिशामें कुआँ हो तो शत्रुसे पीड़ा तथा स्त्रियोंका नाश होता है ।

उत्तर

दिशामें कुआँ हो तो सुख होता है ।

ईशान

दिशामें कुआँ हो तो पुष्टि तथा ऐश्वर्यकी प्राप्ति होती है । ( कुएँके अन्तर्गत भूमिगत टंकी, बोरिंग, ट्युबवैल आदिको भी मान लेना चाहिये । )

( २ ) जलाशयका स्थान -

पूर्व

दिशामें जलाशय हो तो पुत्रहानि होती है ।

आग्नेय

दिशामें जलाशय हो तो अग्निभय होता है ।

दक्षिण

दिशामें जलाशय हो तोप शत्रुभय तथा विनाश होता है ।

नैऋत्य

दिशामें जलाशय हो तो स्त्रीकलह होता है ।

पश्चिम

दिशामें जलाशय हो तो स्त्रियोंमे दुष्टता आती है ।

वायव्य

दिशामें जलाशय हो तो निर्धनता आती है ।

उत्तर

दिशामें जलाशय हो तो धनकी वृद्धि होती है ।

ईशान

दिशामें जलाशय हो तो पुत्रवृद्धि होती है । ( जलाशयके अन्तर्गत ऊर्ध्व टंकीको भी मान लेना चाहिये । )

( ३ ) जलप्रवाह ( जल गिरने ) - का स्थान -

जलप्रवाह पूर्व दिशामें हो तो धनकी प्राप्ति होती है ।

आग्नेय

दिशामें हो तो धनका नाश तथा मृत्यु होती है ।

दक्षिण

दिशामें हो तो निर्धनता, रोग तथा प्राणसंकट उत्पन्न होता है ।

नैऋत्य

दिशामें हो तो प्राणघातक, कलह तथा क्षय करता है ।

पश्चिम

दिशामें हो तो पुत्रकी मृत्यु होती है ।

वायव्य

दिशामें हो तो सुखकी प्राप्ति होती है ।

उत्तर

दिशामें हो तो राज्य - सम्पत्ति तथा सर्वसिद्धिकी प्राप्ति होती है ।

ईशान

दिशामें हो तो धन तथा सुख - सम्पत्तिकी प्राप्ति होती है ।

( ४ ) दिनके दूसरे या तीसरे पहर किसी घर या मन्दिरकी छाया यदि किसी कुएँपर पड़े तो वह घर शुभकारक एवं निवास करनेयोग्य नहीं होता ।