भवनभास्कर

वास्तुविद्याके अनुसार मकान बनानेसे कुवास्तुजनित कष्ट दूर हो जाते है ।


इक्कीसवाँ अध्याय

गृहके विविध भेद

जिस घरमें एक दिशामें एक ही शाला अर्थात् कमरा हो और अन्य दिशाओंमें कोई कमरा न होकर बरामदामात्र हो, उस घरको ' एकशाल ' कहते हैं । जिस घरमें दो दिशाओंमें दो कमरे हों, उस घरको ' द्विशाल ' कहते हैं । जिस घरमें तीन दिशाओंमें तीन कमरे हों, उस घरको ' त्रिशाल ' कहते हैं । जिस घरकी चारों दिशाओंमें चार कमरे हों, उस घरको ' चतुःशाल ' कहते हैं । इस प्रकार वास्तुशास्त्रमें गृहके विविध भेद कहे गये हैं ।

एकशाल - गृह

एकशाल - गृहका कमरा दक्षिणभागमें बनता है और उसका द्वार उत्तरकी ओर होता है ।

यदि एकशाल - गृहकी चारों दिशाओंमें द्वार हो तो उस घरको ' विश्वतोमुख ' कहते हैं । ऐसा घर सभी मनोरथोंकी सिद्धि करनेवाला होता है ।

यदि पश्चिममें कोई द्वार न हो ( अन्य तीन दिशाओंमें द्वार हों ) तो उस घरको ' विजय ' कहते हैं । ऐसा घर सदा धन - सम्पत्ति तथा पुत्र - पौत्रकी वृद्धि करनेवाला होता है ।

यदि उत्तरमें कोई द्वार न हो तो उस घरको ' सूकर ' कहते हैं । ऐसे घरमें सूकरोंसे अथवा राजा़चे भय होता हैं ।

यदि पूर्वमें कोई द्वार न हो तो उस घरको ' व्याघ्रपाद ' कहते हैं । ऐसे घरमें पशु तथा चोरसे भय होता है ।

यदि दक्षिणमें कोई द्वार न हो तो उस घरको ' शेखर ' कहते हैं । ऐसा घर सब वस्तुओं तथा रत्नोंको देनेवाला होता हैं ।

द्विशाल - गृह

यदि पश्चिम और दक्षिण दिशाओंमे दो कमरे हों तो उस घरको ' सिद्धार्थ ' कहते हैं । ऐसा घर धन - धान्य देनेवाला, क्षेमकी वृद्धि करनेवाला तथा पुत्रप्रद होता है ।

यदि पश्चिम और उत्तर दिशाओंमें दो कमरे हों तो उस घरको ' यमसूर्य ' कहते हैं । ऐसा घर गृहस्वामीके लिये मृत्युदायक, राजा, शत्रु, चोर और अग्निसे भय देनेवाला तथा कुलका नाश करनेवाला होता है ।

यदि उत्तर और पूर्व दिशाओंमें दो कमरे हों तो उस घरको ' दण्ड ' कहते हैं । ऐसा घर दण्डसे मृत्यु देनेवाला , अकालमृत्यु देनेवाला तथा शत्रुओंसे भय देनेवाला होता हैं ।

यदि पूर्व और दक्षिण दिशाओंमें दो कमरे हों तो उस घरको ' वात ' कहते हैं । ऐसा घर सदा कलह करानेवाला, वातरोग देनेवाला, सर्प, चोर तथा शस्त्रसे भय देनेवाला तथा पराजय देनेवाला होता है ।

यदि पूर्व और पश्चिम दिशाओंमें दो कमरे हों तो उस घरको ' चुल्ली ' कहते हैं । ऐसा घर धनका नास करनेवाला, मृत्यु देनेवाला, स्त्रियोंको विधवा करनेवाला तथा अनेक भय देनेवाला होता है ।

यदि दक्षिण और उत्तर दिशाओंमें दो कमरे हों तो उस घरको ' काच ' कहते हैं । ऐसा घर बन्धुओंसे विरोध करनेवाला तथा भयदायक होता है ।

त्रिशाल - गृह

यदि मकानके भीतर उत्तर दिशामें कोई कमरा न हो ( शेष तीन दिशाओंमें तीन कमरे हों ) तो उस घरको ' हिरण्य ' या ' धान्यक ' कहते हैं । ऐसा घर क्षेमकारक, वृद्धिकारक तथा अनेक पुत्र देनेवाला होता है ।

यदि पूर्व दिशामें कोई कमरा न हो तो उस घरको ' सुक्षेत्र ' कहते हैं । ऐसा घर धन, पुत्र, यश और आयुको देनेवाला तथा शोक और मोहका नाश करनेवाला होता हैं ।

यदि दक्षिण दिशामें कोई कमरा न हो तो उस घरको ' विशाल ' कहते हैं । ऐसा घर धनका नाश करनेवाला, कुलका क्षय करनेवाला और सब प्रकारके रोग तथा भय देनेवाला होता है ।

यदि पश्चिम दिशामें कोई कमरा न हो तो उस घरको ' पक्षघ्न ' कहते हैं । ऐसा घर मित्र, भाई - बन्धु तथा पुत्रोंका नाश करनेवाला, अनेक शत्रुओंको उत्पन्न करनेवाला तथा सब प्रकारके भय़ देनेवाला होता है ।

चतुःशाल - गृह

जिस चतुःशाल घरकी चारों दिशाओंमें चार दरवाजे हों, उस सर्वतोमुखी घरको ' सर्वतोभद्र ' कहते हैं । ऐसा घर राजा और देवता ( मन्दिर ) - के लिये शुभ होता है, दूसरोंकि लिये नहीं ।

यदि पश्चिम दिशामें द्वार न हो ( शेष तीन दिशाओंमें द्वार हों ) तो उस घरको ' नन्द्यावर्त ' कहते हैं । यदि दक्षिण दिशामें द्वार न हो तो उस घरको ' वर्धमान ' कहते हैं । यदि उत्तर दिशामें द्वार न हो तो उस घरको ' स्वस्तिक ' कहते हैं । यदि उत्तर दिशामें द्वार न हो तो उस घरको ' रुचक ' कहते हैं ।

नन्द्यावर्त तथा वर्धमान घर सबके लिये श्रेष्ठ हैं । स्वस्तिक तथा रुचक घर मध्यम फलवाले हैं ।