मैं अनेक वासनाओं को चाहता हूँ प्राणपण से
उनसे वंचित कर मुझे बचा लिया तुमने।
संचित कर रखूंगा तुम्हारी यह निष्ठुर कृपा
जीवन भर अपने।
बिना चाहे तुमने दिया है जो दान
दीप्त उससे गगन, तन-मन-प्राण,
दिन-प्रतिदिन तुमने ग्रहण किया मुझ को
उस महादान के योग्य बनाकर
इच्छा के अतिरेक जाल से बचाकर मुझे।
मैं भूल-भटक कर, कभी पथ पर बढ़ कर
आगे चला गया तुम्हारे संघान में
दृष्टि-पथ से दूर निकल कर।
हाँ, मैं समझ गया, यह भी है तुम्हारी दया
उस मिलन की चाह में, इसलिए लौटा देते हो मुझे
यह जीवन पूर्ण कर ही गहोगे
अपने मिलने के योग्य बना कर
अधूरी चाह के संकट से
मुझे बचा कर।
गीतांजलि
गीतांजलि रवीन्द्रनाथ ठाकुर की कविताओ का संग्रह है, जिनके लिए उन्हे सन् १९१३ में नोबेल पुरस्कार मिला था। 'गीतांजलि' शब्द गीत और अन्जलि को मिला कर बना है जिसका अर्थ है - गीतों का उपहार (भेंट)। यह अग्रेजी में लिखी १०३ कविताएँ हैं। इस रचना का मूल संस्करण बंगला मे था जिसमें ज्यादातर भक्तिमय गाने थे।