गीतांजलि

गीतांजलि रवीन्द्रनाथ ठाकुर की कविताओ का संग्रह है, जिनके लिए उन्हे सन् १९१३ में नोबेल पुरस्कार मिला था। 'गीतांजलि' शब्द गीत और अन्जलि को मिला कर बना है जिसका अर्थ है - गीतों का उपहार (भेंट)। यह अग्रेजी में लिखी १०३ कविताएँ हैं। इस रचना का मूल संस्करण बंगला मे था जिसमें ज्यादातर भक्तिमय गाने थे।


कहाँ है प्रकाश, कहाँ है उजाला

कहाँ है प्रकाश, कहाँ है उजाला
विरहानल से इसे जला लो।
दीपक है, पर दीप्ति नहीं है;
क्या कपाल में लिखा यही है ?
उससे तो मरना अच्छा है;
विरहानल से इसे जला लो।।
व्यथा-दूतिका गाती-प्राण !
जगें तुम्हारे हित भगवान।
सघन तिमिर में आधी रात
तुम्हें बुलावें प्रेम-विहार-
करने, रखें दुःख से मान।
जगें तुम्हारे हित भगवान।’
मेघाच्छादित आसमान है;
झर-झर बादल बरस रहे हैं।
किस कारण इसे घोर निशा में
सहसा मेरे प्राण जगे हैं ?
क्यों होते विह्वल इतने हैं ?
झर-झर बादल बरस रहे हैं।
बिजली क्षणिक प्रभा बिखेरती,
निविड़ तिमिर नयनों में भरती।
जानें, कितनी दूर, कहाँ है-
गूँजा गीत गम्भीर राग में।
ध्वनि मन को पथ-ओर खींचती,
निविड़ तिमिर नयनों में भरती।
कहाँ आलोक, कहाँ आलोक ?
विरहानल से इसे जला लो।
घन पुकारता, पवन बुलाता,
समय बीतने पर क्या जाना !
निविड़ निशा, घन श्याम घिरे हैं;
प्रेम-दीप से प्राण जला लो।।