इस बार अपने इस वाचाल कवि को
नीरव कर दो।
उसकी हृदय-बाँसुरी छीनकर स्वयं
गहन सुर भर दो।
निशीथ रात्रि के निविड़ सुर में
तान वह वंशी में भर दो
जिस तान से करते अवाक तुम
ग्रह-शशि को।
बिखरा पड़ा है जो कुछ मेरा
जीवन और मरण में,
गान से मोहित हो मिल जाएँ
तुम्हारे चरण में।
बहुत दिनों की बातें सारी
बह जाएँगी निमिष मात्र में,
बैठ अकेला सुनूँगा वंशी
अकूल तिमिर में।
गीतांजलि
गीतांजलि रवीन्द्रनाथ ठाकुर की कविताओ का संग्रह है, जिनके लिए उन्हे सन् १९१३ में नोबेल पुरस्कार मिला था। 'गीतांजलि' शब्द गीत और अन्जलि को मिला कर बना है जिसका अर्थ है - गीतों का उपहार (भेंट)। यह अग्रेजी में लिखी १०३ कविताएँ हैं। इस रचना का मूल संस्करण बंगला मे था जिसमें ज्यादातर भक्तिमय गाने थे।