मान ली, हार मान गई.
जितना ही तुमको दूर ढकेला
उतनी ही मैं दूर भई.
मेरे चित्ताकाश से
तुम्हे जो कोई दूर रखे
कैसे भी यह सह्य नहीं
हर बार ही जान गई.
अतीत जीवन की छाया बन
चलता पीछे-पीछे,
अनगिन माया बजाकर वंशी
व्यर्थ ही पुकारें मुझे.
सब छूटे, पाकर साथ तुम्हारा
अब हाथों में डोर तुम्हारे
जो है मेरा इस जीवन में
लेकर आई द्वार तुम्हारे.
गीतांजलि
गीतांजलि रवीन्द्रनाथ ठाकुर की कविताओ का संग्रह है, जिनके लिए उन्हे सन् १९१३ में नोबेल पुरस्कार मिला था। 'गीतांजलि' शब्द गीत और अन्जलि को मिला कर बना है जिसका अर्थ है - गीतों का उपहार (भेंट)। यह अग्रेजी में लिखी १०३ कविताएँ हैं। इस रचना का मूल संस्करण बंगला मे था जिसमें ज्यादातर भक्तिमय गाने थे।