एक-एक कर अपने
खोलो तार पुराने, खोलो तार पुराने
साधो यह सितार, बाँधकर नए तार.
खत्म हो गया दिन का मेला
सभा जुड़ेगी संध्या बेला
अंतिम सुर जो छेड़ेगा, उसके
आने की यह आ गई बेला--
साधो यह सितार, बाँधकर नए तार.
द्वार खोल दो अपने हे
अंधेरे आकाश के ऊपर से
सात लोकों की नीरवता
आए तुम्हारे घर में.
इतने दिनों तक गाया जो गान
आज हो जाए उसका अवसान
यह साज है तुम्हारा साज
इस बात को ही दो बिसार
साधो यह सितार, बाँधकर नए तार.
गीतांजलि
गीतांजलि रवीन्द्रनाथ ठाकुर की कविताओ का संग्रह है, जिनके लिए उन्हे सन् १९१३ में नोबेल पुरस्कार मिला था। 'गीतांजलि' शब्द गीत और अन्जलि को मिला कर बना है जिसका अर्थ है - गीतों का उपहार (भेंट)। यह अग्रेजी में लिखी १०३ कविताएँ हैं। इस रचना का मूल संस्करण बंगला मे था जिसमें ज्यादातर भक्तिमय गाने थे।