वहन कर सकूँ प्रेम तुम्हारा
ऐसी सामर्थ्य नहीं।
इसीलिए इस संसार में
मेरे-तुम्हारे बीच
कृपाकर तुमने रखे नाथ
अनेक व्यवधान-
दुख-सुख के अनेक बंधन
धन-जन-मान।
ओट में रहकर क्षण-क्षण
झलक दिखाते ऐसे-
काले मेघों की फॉंको से
रवि मृदुरेखा जैसे।
शक्ति जिन्हें देते ढोने की
असीम प्रेम का भार
एक बार ही सारे परदे
देते हो उतार।
न रखते उन पर घर के बंधन
न रखते उनके धन
नि:शेष बनाकर पथ पर लाकर
करते उन्हें अकिंचन।
न व्यापता उन्हें मान-अपमान
लज्जा-शरम-भय।
अकेले तुम सब कुछ उनके
विश्व-भुवनमय।
इसी तरह आमने-सामने
सम्मुख तुम्हारा रहना,
केवल मात्र तुम्हीं में प्राण
परिपूर्ण कर रखना,
यह दया तुम्हारी पाई जिसने
उसका लोभ असीम
सकल लोभ वह दूर हटाता
देने को तुमको स्थान।
गीतांजलि
गीतांजलि रवीन्द्रनाथ ठाकुर की कविताओ का संग्रह है, जिनके लिए उन्हे सन् १९१३ में नोबेल पुरस्कार मिला था। 'गीतांजलि' शब्द गीत और अन्जलि को मिला कर बना है जिसका अर्थ है - गीतों का उपहार (भेंट)। यह अग्रेजी में लिखी १०३ कविताएँ हैं। इस रचना का मूल संस्करण बंगला मे था जिसमें ज्यादातर भक्तिमय गाने थे।