मेरा खेल साथ तुम्हारे जब होता था
तब, कौन हो तुम, यह किसे पता था.
तब, नहीं था भय, नहीं थी लाज मन में, पर
जीवन अशांत बहता जाता था
तुमने सुबह-सवेरे कितनी ही आवाज लगाई
ऐसे जैसे मैं हूँ सखी तुम्हारी
हँसकर साथ तुम्हारे रही दौड़ती फिरती
उस दिन कितने ही वन-वनांत.
ओहो, उस दिन तुमने गाए जो भी गान
उनका कुछ भी अर्थ किसे पता था.
केवल उनके संग गाते थे मेरे प्राण,
सदा नाचता हृदय अशांत.
हठात् खेल के अंत में आज देखूँ कैसी छवि--
स्तब्ध आकाश, नीरव शशि-रवि,
तुम्हारे चरणों में होकर नत-नयन
एकांत खड़ा है भुवन.
गीतांजलि
गीतांजलि रवीन्द्रनाथ ठाकुर की कविताओ का संग्रह है, जिनके लिए उन्हे सन् १९१३ में नोबेल पुरस्कार मिला था। 'गीतांजलि' शब्द गीत और अन्जलि को मिला कर बना है जिसका अर्थ है - गीतों का उपहार (भेंट)। यह अग्रेजी में लिखी १०३ कविताएँ हैं। इस रचना का मूल संस्करण बंगला मे था जिसमें ज्यादातर भक्तिमय गाने थे।