अधिमासव्रत (Adhimasvrat)

व्रतसे ज्ञानशक्ति, विचारशक्ति, बुद्धि, श्रद्धा, मेधा, भक्ति तथा पवित्रताकी वृद्धि होती है ।


अधिमासव्रत - अधिमासव्रत


 
अधिमासव्रत 
( भविष्योत्तर ) - 
चैत्रादि महीनोंमें जो महीना अधिमास हो, उसके सम्पूर्ण साठ दिनोंमेंसे प्रथमकी शुक्ल प्रतिपदासे प्रारम्भ करके द्वितीयकी कृष्ण अमावास्यातक तीस दिनोंमें अधिमासके निमित्तका उपवास या नक्त अथवा एकभुक्त व्रत करके यथासामर्थ्य दान - पुण्यादि करे । यदि मासपर्यन्तकी सामर्थ्य न हो या उतना अवसर ही न मिले तो पुण्यप्रद किसी भी दिनमें दोनों स्त्री - पुरुष प्रातःस्त्रानादि नित्यकर्म करके भगवान् वासुदेवको हदयमें रखकर व्रत या उपवास करें और अव्रण कलशपर लक्ष्मी और नारायणकी मूर्ति स्थापन करके उनका सप्रेम पूजन करें । पूजनके समय 


' देवदेव महाभाग प्रलयोत्पत्तिकारक । कृष्ण सर्वेश भूतेश जगदानन्दकारक । गृहाणार्घ्यमिमं देव दयां कृत्वा ममोपरि ॥' 


से अर्घ्य दे और 


' स्वयम्भुवे नमस्तुभ्यं ब्रह्मणेऽमिततेजसे । नमोऽस्तु ते श्रितानन्द दयां कृत्वा ममोपरि ॥' 


से प्रार्थना करे । नैवेद्यमें घी, गेहूँ और गुड़के बने हुए पदार्थ; दाख, केले, नारियल, कूष्माण्ड ( कुम्हड़ा ) और दाडिमादि फल और बैगन, ककड़ी, मूली और अदरख आदि शाक अर्पण करके अन्न, वस्त्र, आभूषण और अन्य प्रकारके पृथक् - पृथक् पदार्थोंका दान दे ।