श्रीमैत्रेयजी बोले -
हे मुने ! मैंने आपसे जो कुछ पूछा था वह सब आपने वर्णन कियाः अब भृगुजीकी सन्तानसे लेकर सम्पूर्ण सृष्टिका आप मुझसे फिर वर्णन कीजिये ॥१॥
श्रीपराशरजी बोले -
भृगुजीके द्वारा ख्यातिसे विष्णुपत्नी लक्ष्मीजी और धाता, विधाता नामक दो पुत्र उप्तन्न हुए ॥२॥
महात्मा मेरुकी आयति और नियतिनाम्री कन्याएँ धाता और विधाताकी स्त्रियाँ थीं; उनसे उनके प्राण और मृकण्ड नामक दो पुत्र हुए । मृकण्डुसे मार्कण्डेय और उनसे वेदशिराका जन्म हुआ । अब प्राणकी सन्तानका वर्णन सुनो ॥३-४॥
प्राणका पुत्र द्युतिमान् और उसका पुत्र राजवान् हुआ । हे महाभाग । उस राजवानसे फिर भृगुंवंशका बड़ा विस्तार हुआ ॥५॥
मरिचिकी पन्ती सम्भूतिने पौर्णमासको उप्तन्न किया । उस महात्माके विरजा और पर्वत दो पुत्र थे ॥६॥
हे द्विज ! उनके वंशका वर्णन करते समय मैं उन दोनोंकी सन्तानका वर्णन करुँगा । अंगिराकी नामकी कन्याएँ , हुई ॥७॥
अत्रिकी भार्या अनसूयाने चन्द्रमा, दुर्वासा और योगी दत्तात्रेय इन निष्पाप पुत्रोंको जन्म दिया ॥८॥
पुलस्त्यकी स्त्री प्रीतिसे दत्तोलिका जन्म हुआ जो अपने पूर्व जन्ममें स्वायम्भुव मन्वन्तरमें अगस्त्य कहा जाता था ॥९॥
प्रजापति पुलहकी पत्नी क्षमासे कर्दम, उर्वरीयान् और सहिष्णु ये तीन पुत्र हुए ॥१०॥
क्रतुकी सन्ताति नामकः भार्याने अँगूठेके पोरुओंके समान शरीरवाले तथा प्रखर सूर्यके समान तेजस्वी वालखिल्यादि साठ हजार ऊर्ध्वरेता मुनियोंको जन्म दिया ॥११॥
वसिष्ठकी ऊर्जा नामक स्त्रीसे रज, गोत्र, ऊर्ध्वबाहु, सवन , अनघ, सुतपा और शुक्र ये सात पुत्र उप्तन्न हुए । ये निर्मल स्वभाववाले समस्त मुनिगण ( तीसरे मन्वन्तरमें ) सप्तर्षि हुए ॥१२-१३॥
हे द्विज ! अग्निका अभिमानी देव, जो ब्रह्माजीका ज्येष्ठ पुत्र है, उसके द्वारा स्वाहा नामक पत्नीसे अति तेजस्वी पावक, पवमान और जलको भक्षण करनेवाला शूचि ये तीन पुत्र हुए ॥१४-१५॥
इन तीनोंके ( प्रत्येकके पन्द्रह पन्द्रह पुत्रके क्रमसे ) पैंतालीस सन्तान हुईं । पिता अग्नि और उसके तीन पुत्रोंको मिलाकर ये सब अग्नि ही कहलाते हैं । इस प्रकार कुल उनचास (४९) अग्नि कहे गये हैं ॥१६-१७॥
हे द्विज ! ब्रह्माजीद्वारा रचे गये जिन अनग्निक अग्निष्वात्ता और साग्निक बर्ह्माजीद्वारा रचे गये जिन अनाग्निक अग्निष्वात्ता और साग्निक बर्हिषद् आदि पतिरोंके विषयमें तुमसे कहा था । उनके द्वारा स्वधाने मेना और धारिणी नामक दो कन्याएँ उप्तन्न कीं । वे दोनों ही उत्तम ज्ञानसे सम्पन्न और सभी गुणोंसे युक्त ब्रह्मावादिनी तथा योगिनी थीं ॥१८-२०॥
इस प्रकार यह दक्षकन्याओंकी वंशपरम्पराका वर्णन किया । जो कोई श्रद्धापूर्वक इसका स्मरण करता है वह निःसन्तान नहीं रहता ॥२१॥
इति श्रीविष्णुपुराणे प्रथमेंऽशे दशमोऽध्यायः ॥१०॥
श्रीविष्णुपुराण - प्रथम अंश - 1
भारतीय जीवन-धारा में पुराणों का महत्वपूर्ण स्थान है, पुराण भक्ति ग्रंथों के रूप में बहुत महत्वपूर्ण माने जाते हैं। जो मनुष्य भक्ति और आदर के साथ विष्णु पुराण को पढते और सुनते है,वे दोनों यहां मनोवांछित भोग भोगकर विष्णुलोक में जाते है।