लघुपाठ

धर्मानंद कोसंबी लिखित बुद्ध साहित्य


गिरिमानन्दसुत्तं 1

गिरिमानन्दसुत्तं

एवं मे सुतं | एकं समयं भगवा सावत्थियं विहरति जेतवने अनाथपिण्डिकस्स आरामे ||  तेन खो पन समयेन आयस्मा गिरिमानन्दो अबाधिको होति दुक्खितो बाळ्हगिलानो ||अथ खो आयस्मा आनन्दो येन भगवा तेनुपसंकमि || उपसंकमित्वा भगवन्तं अभिवादेत्वा एकमन्तं नीसीदि || एकमन्तं निसिन्नो खो आयस्मा आनन्दो भगवन्तं एतदवोच | आयस्मा भन्ते गिरिमानन्दो आबाधिको दुक्खितो बाळ्हगिलानो || साधु भन्ते भगवा येनायस्मा गिरिमानन्दो तेनुपसंकमतु अनुकंपं उपदाया ति ||


असें मीं ऐकलें आहे | ऐके समयीं भगवान् श्रावस्ती येथें जेतवनांत अनाथपिण्डिकाच्या आरामांत राहत होता || त्या वेळी आयुष्यमान् गिरिमानन्द फार आजारी व वेदनार्त होता || तेव्हां आयुष्यमान् आनन्द भगवान होता तेथे गेला | तेथें जाऊन भगवन्ताला नमस्कार करून एका बाजूस बसला || एका बाजूस बसून  आयुष्यमान आनंन्द भगवन्ताला म्हणाला| भदन्त, आयुष्यमान् गिरिमानन्द फार आजारी आणि वेदनार्त आहे | जर भगवान् कृपा करून गिरिमानन्द आहे तेथें जाईल तर बरें होईल ||

सचे खो त्वं आनन्द गिरिमानन्दस्स भिक्खुनो उपसंकमित्वा दस सञ्ञा भासेय्यासि | ठानं खो पनेतं विज्जति यं गिरिमानन्दस्स भिक्खुनो दस सञ्ञा सुत्वा सो आबाधो ठानसो पटिपस्संभेय्य | कतमा दस सञ्ञा सुत्वा सो आबाधो ठानसो पटिपस्संभेय्य | कतमा दस | अनिच्चसञ्ञा | अनन्तसञ्ञा | असुभसञ्ञा | आदीनवसञ्ञा | पहानसञ्ञा | पहानसञ्ञा | विरागसञ्ञा | निरोधसञ्ञा | सब्बलोके अनभिरतसञ्ञा | सब्बसंखारेसु अनिच्चसञ्ञा | आनापानसति ||

(भगवान म्हणाला) हे आनन्द, जर तूं गिरिमानन्द भिक्षूपाशीं जाऊन दहा संज्ञा त्याला सांगशील तर त्या ऐकून त्याचा आजार साफ बरा होण्याचा संभव आहे | कोणत्या दहा संज्ञा ? अनित्याची संज्ञा | अनात्म्याची संज्ञा | अशुभाची संज्ञा | दोषांची संज्ञा | प्रहाणाची संज्ञा | विरागाची संज्ञा | निरोधाची संज्ञा | सर्व लोकी रत न होण्याची संज्ञा | सर्व संस्कार अनित्य आहेत अशी संज्ञा | आनापानस्मृति ||

कतमा चानन्द अनिच्चसञ्ञा | इधानन्द भिक्खु अरञ्ञगतो वा रुक्खमूलगतो वा सुञ्ञागरागतो वा इति पटिसंचिक्खति | रूपं अनिच्चं | वेदना अनिच्चा | सञ्ञा अनिच्चा | संखारा अनिच्चा | विञ्ञाणं अनिच्चं ति || इति इमेसु पंचसु उपादानक्खन्धेसु अनिच्चानुपस्सी विहरति || अयं वुच्चतानन्द अनिच्चसञ्ञा ||

हे आनन्द, अनित्याची संज्ञा कोणती ? एखादा भिक्षु अरण्यांत झाडांखालीं किंवा एकान्त स्थळी जाऊन असा विचार करितो कीं, रूप अनित्य | वेदना अनित्य | संज्ञा अनित्य | संस्कार अनित्य | विज्ञान अनित्य | या प्रमाणे हे पांच उपादानस्कंध अनित्य आहेत असें पाहतो || हे आनन्द, हिला अनित्याची संज्ञा म्हणतात ||