पटिच्चसमुप्पादो
तेन समयेन बुद्धो भगवा उरुवेलायं विहरति नज्जा नेरंजराय तीरे बोधिरुक्खमूले पठमाभिसंबुद्धो || अथ खो भगवा बोधिरुक्खमूले सत्ताहं एकपल्लंकेन निसीदि विमुत्तिसुखपटिसंवेदी || अथ खो भगवा रत्तिया पठमं यांमं पटिच्च समुप्पांद अनुलोमपटिलोमं मनसाकासि | अविज्जापच्चया संखरा | संखारपच्चया विञ्ञाणं | विञ्ञाणपच्चया नामरूपं नामरूपपच्चया सळायतनं | सळायतनपच्चया फस्सो | फस्सपच्चया वेदना | वेदनापच्चया तण्हा | तण्हापच्चया उपादानं | उपादानपच्चया भवो | भवपच्चया जाति जातिपच्चया जरामरणं सोकपरिदेवदुक्खदोमनस्सुपायासा संभवन्ति | एवमेतस्स केवलस्स दुक्खक्खन्धस्स समुद्यो होति ||
त्या समयीं प्रथम अभिसंबुद् झालेला बुद्ध भगवान् उरुवेला येथें नेरंजरा नदीच्या कांठीं बोधिवृक्षाखाली राहत होता || तेथें भगवान् विमुक्तिसुखाचा अनुभव घेत सात दिवस आसनमांडी घालून बसला || तेंव्हा रात्रीच्या प्रथम यामांत भगवन्ताने प्रतीत्यसमुत्पाद उलटसुलट मनांत आणला | अविद्येपासून संस्कार | संस्करापासून विज्ञान || विज्ञानापासून नामरूप | नामरूपापासून षडायतन | षडायतनापासून स्पर्श | स्पर्शापासून वेदना | वेदनेपासून तृष्णा | तृष्णेपासून उपादान | उपादानापासून भव | भवापासून जन्म | जन्मापासून जरा, मरण, शोक परिदेव, दु:ख, दौर्मनस्य उपायास, हे उत्पन्न होतात | याप्रमाणे ह्य सर्व दु:खराशीचा उत्पाद होतो ||
अविज्जाय त्वेव असेसविरागनिरोधा संखारनारोधा | संखारनिरोधा विञ्ञाणनिरोधो | विञ्ञाणनिरोधा नामरूपनिरोधो | नामरूपनिरोधा सळायतननिरोधो | सळायतननिरोधा फस्सनिरोधो | फस्सनिरोधा वेदनानिरोधो | वेदना निरोधा तण्हनिरोधो | तण्हनिरोधा उपादाननिरोधो | उपादाननिरोधा भवनिरोधो | भवनिरोधा जातिनिरोधो | जातिनिरोधा जरामरणं सोकपरिदेवदुक्खदोमनस्सुपायासा निरुज्झन्ति | एवमेतस्स केवलस्स दुक्खक्खन्धस्स निरोधो होती ति ||
अविद्येचाच वैराग्यानें अशेष निरोध केला असतां संस्कारांचा निरोध होतो | संस्कारनिरोधानें विज्ञाननिरोध | विज्ञाननिरोधानें नामरूपनिरोध | नामरूपनिरोधाने षडायतननिरोध |
षडायतननिरोधानें स्पर्शनिरोध | स्पर्शनिरोधानें वेदनानिरोध | वेदनानिरोधाने तृष्णानिरोध | तृष्णानिरोधानें उपादाननिरोध | उपदाननिरोधानें भवनिरोध | भवनिरोधाने जन्मनिरोध | जन्मनिरोधानें जरा, मरण, शोक, परिदेव, दु:ख, दौर्मनस्य, उपायास, यांचा निरोध होतो | याप्रमाणे ह्या सर्व दु:खराशीचा निरोध होतो ||
|| पटिच्चसमुप्पादो निट्ठितो ||
तेन समयेन बुद्धो भगवा उरुवेलायं विहरति नज्जा नेरंजराय तीरे बोधिरुक्खमूले पठमाभिसंबुद्धो || अथ खो भगवा बोधिरुक्खमूले सत्ताहं एकपल्लंकेन निसीदि विमुत्तिसुखपटिसंवेदी || अथ खो भगवा रत्तिया पठमं यांमं पटिच्च समुप्पांद अनुलोमपटिलोमं मनसाकासि | अविज्जापच्चया संखरा | संखारपच्चया विञ्ञाणं | विञ्ञाणपच्चया नामरूपं नामरूपपच्चया सळायतनं | सळायतनपच्चया फस्सो | फस्सपच्चया वेदना | वेदनापच्चया तण्हा | तण्हापच्चया उपादानं | उपादानपच्चया भवो | भवपच्चया जाति जातिपच्चया जरामरणं सोकपरिदेवदुक्खदोमनस्सुपायासा संभवन्ति | एवमेतस्स केवलस्स दुक्खक्खन्धस्स समुद्यो होति ||
त्या समयीं प्रथम अभिसंबुद् झालेला बुद्ध भगवान् उरुवेला येथें नेरंजरा नदीच्या कांठीं बोधिवृक्षाखाली राहत होता || तेथें भगवान् विमुक्तिसुखाचा अनुभव घेत सात दिवस आसनमांडी घालून बसला || तेंव्हा रात्रीच्या प्रथम यामांत भगवन्ताने प्रतीत्यसमुत्पाद उलटसुलट मनांत आणला | अविद्येपासून संस्कार | संस्करापासून विज्ञान || विज्ञानापासून नामरूप | नामरूपापासून षडायतन | षडायतनापासून स्पर्श | स्पर्शापासून वेदना | वेदनेपासून तृष्णा | तृष्णेपासून उपादान | उपादानापासून भव | भवापासून जन्म | जन्मापासून जरा, मरण, शोक परिदेव, दु:ख, दौर्मनस्य उपायास, हे उत्पन्न होतात | याप्रमाणे ह्य सर्व दु:खराशीचा उत्पाद होतो ||
अविज्जाय त्वेव असेसविरागनिरोधा संखारनारोधा | संखारनिरोधा विञ्ञाणनिरोधो | विञ्ञाणनिरोधा नामरूपनिरोधो | नामरूपनिरोधा सळायतननिरोधो | सळायतननिरोधा फस्सनिरोधो | फस्सनिरोधा वेदनानिरोधो | वेदना निरोधा तण्हनिरोधो | तण्हनिरोधा उपादाननिरोधो | उपादाननिरोधा भवनिरोधो | भवनिरोधा जातिनिरोधो | जातिनिरोधा जरामरणं सोकपरिदेवदुक्खदोमनस्सुपायासा निरुज्झन्ति | एवमेतस्स केवलस्स दुक्खक्खन्धस्स निरोधो होती ति ||
अविद्येचाच वैराग्यानें अशेष निरोध केला असतां संस्कारांचा निरोध होतो | संस्कारनिरोधानें विज्ञाननिरोध | विज्ञाननिरोधानें नामरूपनिरोध | नामरूपनिरोधाने षडायतननिरोध |
षडायतननिरोधानें स्पर्शनिरोध | स्पर्शनिरोधानें वेदनानिरोध | वेदनानिरोधाने तृष्णानिरोध | तृष्णानिरोधानें उपादाननिरोध | उपदाननिरोधानें भवनिरोध | भवनिरोधाने जन्मनिरोध | जन्मनिरोधानें जरा, मरण, शोक, परिदेव, दु:ख, दौर्मनस्य, उपायास, यांचा निरोध होतो | याप्रमाणे ह्या सर्व दु:खराशीचा निरोध होतो ||
|| पटिच्चसमुप्पादो निट्ठितो ||