भगवान बुद्ध (पूर्वार्ध)

गौतम बुद्धांचे चरित्र


आर्यांचा जय 1

आर्यांचा जय

प्रकरण पहिलें
उषोदेवीचीं सूक्तें

ॠग्वेदांत जीं उषा देवीची सूक्तें आढळतात, त्यांच्या अनुरोधाने लो. टिळक यांनी आपल्या The Arctic Home in the Vedas या पुस्तकांत आर्य उत्तर ध्रुवाकडे राहत होते, असें सिद्ध करण्याचा प्रयत्‍न केला आहे. 'सदृशीरद्य सदृशीरिदु श्वो दीर्घ सचन्ते वरुणस्य धाम ।' ॠ. १।१२३।८ (आज आणि उद्या ह्या सारख्याच आहेत. त्या दीर्घकालपर्यंत वरुणाच्या गृहांत जातात.)* लोकमान्यांच्या मतें ही आणि अशा तर्‍हेच्या दुसर्‍या ॠचा उत्तर ध्रुवकडील उषःकालाला उद्देशून लिहिलेल्या आहेत; दीर्घकाळपर्यंत उषा वरुणगृहांत जातात, म्हणजे तिकडे सहा महिनेपर्यंत अंधार असतो, असा अर्थ असला पाहिजे.
-----------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------
* 'The Arctic Home in the Vedas' पृष्ठ १०३ पाहा. न.भा. १६....१
-----------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------
परंतु याच सूक्ताच्या बाराव्या ॠचेंत 'अश्वावतीर्गोमतीर्विश्ववारा' हीं उषा देवीचीं विशेषणें सापडतात. 'ज्यांच्याकडे पुष्कळ घोडे आणि गाई आहेत, आणि ज्या सर्वांना पूज्य आहेत' असा त्यांचा अर्थ.* उत्तर ध्रुवाकडे सध्या घोडे आणि गाई नाहीतच; आणि ते प्राणी हजारों वर्षांपूर्वी तिकडे होते यालाही कांहीच आधार सापडलेला नाही. ह्या एकाच सूक्तांत नव्हे, तर उषोदेवीच्या इतर सूक्तांतून देखील ती घोडे आणि गाई देणारी, गाईंची जन्मदात्री, इत्यादि विशेषणें भरपूर सापडतात. यावरून ह्या ॠचा किंवा ही सूक्तें उत्तर ध्रुवाकडे रचलीं नाहीत हें सिद्ध होतें.
-----------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------
* येथे उषा बहुवचनान्त आहे.
-----------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------
इश्तर
तर मग दीर्घकालपर्यंत उषा पाताळांत जातात याचा अर्थ कसा करावा ? बाबिलोनियन लोकांत फार प्राचीन काळापासून प्रचलित असलेल्या इश्तर देवतेच्या दंतकथा लक्षांत घेतल्या म्हणजे याचा अर्थ सहज जाणतां येतो. तम्मुज किंवा दमुत्सि (वैदिक दमूनस्) या देवावर इश्तरचें प्रेम जडतें. पण तो एकाएकी मरण पावतो. त्याला जिवंत करण्यासाठी अमृत आणण्याच्या हेतूने इश्तर पाताळांत प्रवेश करते. तेथील राणी अल्लतु ही इश्तरची बहीण. तरी ती इश्तरचा भयंकर छळ करते; क्रमशः तिचे सर्व दागिने काढून घ्यावयास लावून तिला रोगी बनवते आणि कैदेंत टाकते. चार किंवा सहा महिने अशा रीतीने दुःख आणि कैद भोगल्यावर अल्लतूकडून इश्तरला अमृत मिळतें; आणि ती पुन्हा पृथ्वीवर येते.* इश्तरच्या दुसर्‍या अनेक दंतकथा आहेत, पण त्यांत ही दंतकथा प्रमुख दिसते. हिचें वर्णन सर्व बाबिलोनियन वाङ्‌मयांत आढळतें. ॠग्वेदांतील वरच्या सारख्या ॠचांचा संबंध या दंतकथेशीं आहे यांत संशय बाळगण्याचें कारण नाही.
-----------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------
* Lewis Spence : Myths and Legends of Babylonia and Assyria, (1926), pp. 125-131.
-----------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------
इश्तर पाताळांतून वर येते, तेव्हा तिचा त्या ॠतूंत उत्सव मानण्यांत येत होता; तांबड्या बैलांच्या गाडींतून तिची रथयात्रा काढीत असत. घोड्यांचा शोध लागल्यानंतर तिचा रथ घोडे ओढीत. 'एषा गोभिररुणेभिर्युजाना' ॠ. ५।८०।३ (ही उषा, जिच्या रथाला तांबडे बैल लावले आहेत.) 'वितद्ययुररुणयुग्भिरश्वैः' ॠ. ६।६५।२ (अरुणवर्ण घोड्यांच्या रथांतून उषा देवी आल्या.)

घोड्यांचा लढाईंत उपयोग
इ. स. पूर्वी दोन हजार वर्षे बाबिलोनियांत घोड्याचा उपयोग मुळीच माहीत नव्हता. रथाला बैल किंवा गाढवें जुंपीत असत; आणि ते लोक घोड्यांना जंगली गाढवें म्हणत. बाबिलोनियाच्या उत्तरेस डोंगरी प्रदेशांत राहणारे केशी लोक प्रथमतः माल वाहून नेण्याच्या कामीं घोड्यांचा उपयोग करूं लागले. या जंगली गाढवांना लगामांत आणून आणि त्यांच्यावर स्वार होऊन धान्य गोळा करण्याच्या वेळीं ते बाबिलोनियांत येत; आणि तेथील शेतकर्‍यांना मदत करून मजुरीबद्दल मिळालेलें धान्य आपल्या घोड्यांवरून वाहून नेत. केशी लोकांना युद्धकला मुळीच माहीत नव्हती. ती कला ते बाबिलोनियन लोकांपासून शिकले, आणि त्यांनी प्रथमतः लढाईंत घोड्याचा उपयोग केला.*
-----------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------
* L. W. King : A History of Babylon, (1915), P. 125.
-----------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------
आपल्या घोडदळाच्या बळावर केशींच्या गंदश नांवाच्या राजाने इ.स. पूर्वी १७६० या वर्षी बाबिलोनियांत सार्वभौम राज्य स्थापन केलें. आणि त्यानंतर त्याच्या वंशजांची परंपरा सुरू राहिली.* मुद्याची गोष्ट ही की, इ.स. पूर्व अठराशें वर्षांमागे घोड्याचा लढाईंत उपयोग केला गेल्याचा दाखला कोठेच सापडत नाही; अणि वेदांत तर जिकडे तिकडे घोड्याचें महत्त्व वर्णिलें असून केशींचा आणि घोड्यांचा निकट संबंध दाखविलेला आहे. यावरून आर्यांची सप्‍तसिंधूवरची स्वारी इ.स. पूर्वी सतराशें वर्षांपलीकडे जाऊं शकत नाही, हें स्पष्ट होतें.
-----------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------
* L. W. King : A History of Babylon, (1915), P. 214.
-----------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------