सतरंज्या, खाटा, चौरंग, उशा, पिकदाणी वगैरे सर्व पदार्थ उन्हांत वाळवून साफसूफ करून यथायोग्य स्थानीं ठेवावे. त्याचप्रमाणें पात्रें व चीवरें यथायोग्य स्थानीं ठेवावीं.
१०. पूर्वेकडून हवेनें धूळ उडत असल्यास पूर्वेकडील खिडक्या बंद कराव्या. पश्चिमेकडून उडत असल्यास पश्चिमेकडील, उत्तरेकडून उडत असल्यास उत्तरेकडील, व दक्षिणेकडून धूळ उडत असल्यास दक्षिणेकडील खिडक्या बंद कराव्या. थंडीच्या दिवसांत खिडक्या दिवसा उघडाव्या व रात्री बंद कराव्या; आणि उन्हाळ्यांत दिवसा बंद कराव्या व रात्रीं उघडाव्या. राहण्याची खोली, बसण्याची कोठडी, एकत्र जमण्याचा दिवाणखाना, आग्निशाळा व पायखाना साफ नसतील तर ह्या सर्व जागा साफ कराव्या. पिण्याचें पाणी नसेल तर तें भरून ठेवावें. पाय धुण्याचें पणी नसेल तर तेंहि आणून ठेवावें, पायखान्यांत ठेवलेल्या बरणींत पाणी नसेल तर तेंहि भरून ठेवावें.
११. उपाध्यायाल अनभिरति १ उत्पन्न झाली असल्यास शिष्यानें दुसर्यांकडून ती शमविण्याचा प्रयत्न करावा; किंवा धर्मोपदेश करावा, उपाध्यायाला शंका उद्मवली असल्यास शिष्यानें ती दूर करावी, करवावी किंवा धर्मोपदेश करावा. उपाध्यायाला मिथ्यादृष्टी उद्मवली असल्यास शिष्यानें ती सोडवावी, दुसर्यांकडून सोडवावी किंवा धर्मोपदेश करावा.
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(१ - धर्माचरणांत असंतोष.)
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१२. उपाध्यायाच्या हातून संघादिशेष २ नांवाचा अपराध घडला असल्यास आणि परिवांस देण्यास योग्य असल्यास शिष्यानें संघाकडून उपाध्यायाला परिवास३ मिळेल अशी खटपट करावी. उपाध्याय पूर्वस्थितींत येण्यास योग्य असल्यास संघ त्याला पूर्वस्थितींत आणील अशी खटपट कारावी. मानत्त किंवा अब्भान५ देण्यास योग्य असल्यास संघ मानत्त किंवा अब्भान देईल अशाविषयीं खटपट करावी.
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२- भाग २रा, कलम ५ ते १७ पहा.
३- भाग १ला, कलम ७८ पहा.
४- भाग १ला, कलम ७९ पहा.
५- भाग ४ला, कलम ८१ पहा.
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१३. संघानें उपाध्यायाला तर्जनीयकर्म,१
नियश:कर्म, प्रव्राजनीयकर्म, प्रतिस्मरणीयकर्म किंवा उत्क्षेपणीयकर्म करण्याचा विचार केला असल्यास तें होऊं न देण्याविषयीं, किंवा थोडक्या दंडानें उपाध्यायाला क्षमा करण्यांत येईल अशाविषयीं खटपट करावी. जर ह्यापैकीं एकादें कर्म केलें असेल तर उपाध्याय नम्रपणें वागेल व संघ त्याला क्षमा करील अशाविषयीं खटपट करावी.
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१- भाग १ला, कलम ७२, पासून ७६ पर्यंत पहा.
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१४. उपाध्यायाचें चीवर धुवावयाचें असल्यास शिष्यानें धुवावें किंवा दसुर्याकडून धुवून घेण्याचा प्रयत्न करावा. जर उपाध्यायाचें चीवर बनवावयाचें असेल तर शिष्यानें बनवावें किंवा दुसर्याकडून बनवून घेण्याचा प्रयत्न करावा. उपाध्यायासाठीं रजन तयार करावयाचें असेल तर तयार करावें किंवा दुसर्यांकडून तयार करवून घ्यावें; चीवर रंगवावयाचें असल्यास रंगवावें किंवा दुसर्यांकडून रंगवून घ्यावें. चीवर रंगवितांना व्यवस्थितपणें रंगवावें.
१५. उपाध्यायाल विचारल्यावांचून एकाद्याला पात्र देऊं नये, किंवा दुसर्याचें पात्र आपण घेऊं नये; दुसर्याला चीवर देऊं नये किंवा दुसर्याचें चीवर आपण घेऊं नये; दुसर्याला पदार्थ देऊं नये व दुसर्याचा पदार्थ आपण घेऊं नये; दुसर्याची हजामत२ आपण करूं नये व दुसर्याकडून आपली हजामत करवून घेऊं नये; दुसर्याचें काम करूं नये व दुसर्याकडून आपलें काम करवून घेऊं नये; दुसर्याची व्यवस्था पाहूं नये व दुसर्यास आपली व्यवस्था पहाण्यास लावूं नये; दुसर्याचा साथीदार होऊं नये व दुसर्यास आपला साथीदार करूं नये; दुसर्याची भिक्षा घेऊं नये व दुसर्यास आपली भिक्षा देऊं नये. उपाध्यायाला विचारल्यावाचून गांवांत, स्मशानांत किंवा प्रवासाला जाऊं नये. उपाध्याय आजारी असल्यास मरेपर्यंत किंवा आजारांतून उठेपर्यंत त्याची सेवा करावी.
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२- भिक्षु परस्परांची हजामत करतात.
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१०. पूर्वेकडून हवेनें धूळ उडत असल्यास पूर्वेकडील खिडक्या बंद कराव्या. पश्चिमेकडून उडत असल्यास पश्चिमेकडील, उत्तरेकडून उडत असल्यास उत्तरेकडील, व दक्षिणेकडून धूळ उडत असल्यास दक्षिणेकडील खिडक्या बंद कराव्या. थंडीच्या दिवसांत खिडक्या दिवसा उघडाव्या व रात्री बंद कराव्या; आणि उन्हाळ्यांत दिवसा बंद कराव्या व रात्रीं उघडाव्या. राहण्याची खोली, बसण्याची कोठडी, एकत्र जमण्याचा दिवाणखाना, आग्निशाळा व पायखाना साफ नसतील तर ह्या सर्व जागा साफ कराव्या. पिण्याचें पाणी नसेल तर तें भरून ठेवावें. पाय धुण्याचें पणी नसेल तर तेंहि आणून ठेवावें, पायखान्यांत ठेवलेल्या बरणींत पाणी नसेल तर तेंहि भरून ठेवावें.
११. उपाध्यायाल अनभिरति १ उत्पन्न झाली असल्यास शिष्यानें दुसर्यांकडून ती शमविण्याचा प्रयत्न करावा; किंवा धर्मोपदेश करावा, उपाध्यायाला शंका उद्मवली असल्यास शिष्यानें ती दूर करावी, करवावी किंवा धर्मोपदेश करावा. उपाध्यायाला मिथ्यादृष्टी उद्मवली असल्यास शिष्यानें ती सोडवावी, दुसर्यांकडून सोडवावी किंवा धर्मोपदेश करावा.
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(१ - धर्माचरणांत असंतोष.)
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१२. उपाध्यायाच्या हातून संघादिशेष २ नांवाचा अपराध घडला असल्यास आणि परिवांस देण्यास योग्य असल्यास शिष्यानें संघाकडून उपाध्यायाला परिवास३ मिळेल अशी खटपट करावी. उपाध्याय पूर्वस्थितींत येण्यास योग्य असल्यास संघ त्याला पूर्वस्थितींत आणील अशी खटपट कारावी. मानत्त किंवा अब्भान५ देण्यास योग्य असल्यास संघ मानत्त किंवा अब्भान देईल अशाविषयीं खटपट करावी.
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२- भाग २रा, कलम ५ ते १७ पहा.
३- भाग १ला, कलम ७८ पहा.
४- भाग १ला, कलम ७९ पहा.
५- भाग ४ला, कलम ८१ पहा.
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१३. संघानें उपाध्यायाला तर्जनीयकर्म,१
नियश:कर्म, प्रव्राजनीयकर्म, प्रतिस्मरणीयकर्म किंवा उत्क्षेपणीयकर्म करण्याचा विचार केला असल्यास तें होऊं न देण्याविषयीं, किंवा थोडक्या दंडानें उपाध्यायाला क्षमा करण्यांत येईल अशाविषयीं खटपट करावी. जर ह्यापैकीं एकादें कर्म केलें असेल तर उपाध्याय नम्रपणें वागेल व संघ त्याला क्षमा करील अशाविषयीं खटपट करावी.
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१- भाग १ला, कलम ७२, पासून ७६ पर्यंत पहा.
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१४. उपाध्यायाचें चीवर धुवावयाचें असल्यास शिष्यानें धुवावें किंवा दसुर्याकडून धुवून घेण्याचा प्रयत्न करावा. जर उपाध्यायाचें चीवर बनवावयाचें असेल तर शिष्यानें बनवावें किंवा दुसर्याकडून बनवून घेण्याचा प्रयत्न करावा. उपाध्यायासाठीं रजन तयार करावयाचें असेल तर तयार करावें किंवा दुसर्यांकडून तयार करवून घ्यावें; चीवर रंगवावयाचें असल्यास रंगवावें किंवा दुसर्यांकडून रंगवून घ्यावें. चीवर रंगवितांना व्यवस्थितपणें रंगवावें.
१५. उपाध्यायाल विचारल्यावांचून एकाद्याला पात्र देऊं नये, किंवा दुसर्याचें पात्र आपण घेऊं नये; दुसर्याला चीवर देऊं नये किंवा दुसर्याचें चीवर आपण घेऊं नये; दुसर्याला पदार्थ देऊं नये व दुसर्याचा पदार्थ आपण घेऊं नये; दुसर्याची हजामत२ आपण करूं नये व दुसर्याकडून आपली हजामत करवून घेऊं नये; दुसर्याचें काम करूं नये व दुसर्याकडून आपलें काम करवून घेऊं नये; दुसर्याची व्यवस्था पाहूं नये व दुसर्यास आपली व्यवस्था पहाण्यास लावूं नये; दुसर्याचा साथीदार होऊं नये व दुसर्यास आपला साथीदार करूं नये; दुसर्याची भिक्षा घेऊं नये व दुसर्यास आपली भिक्षा देऊं नये. उपाध्यायाला विचारल्यावाचून गांवांत, स्मशानांत किंवा प्रवासाला जाऊं नये. उपाध्याय आजारी असल्यास मरेपर्यंत किंवा आजारांतून उठेपर्यंत त्याची सेवा करावी.
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२- भिक्षु परस्परांची हजामत करतात.
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