शनि देव 1
शनि ग्रह के प्रति अनेक आखयान पुराणों में प्राप्त होते हैं।शनिदेव को सूर्य पुत्र एवं कर्मफल दाता माना जाता है। लेकिन साथ ही पितृ शत्रु भी.शनि ग्रह के सम्बन्ध मे अनेक भ्रान्तियां और इस लिये उसे मारक, अशुभ और दुख कारक माना जाता है। पाश्चात्य ज्योतिषी भी उसे दुख देने वाला मानते हैं। लेकिन शनि उतना अशुभ और मारक नही है, जितना उसे माना जाता है। इसलिये वह शत्रु नही मित्र है।मोक्ष को देने वाला एक मात्र शनि ग्रह ही है। सत्य तो यह ही है कि शनि प्रकृति में संतुलन पैदा करता है, और हर प्राणी के साथ उचित न्याय करता है। जो लोग अनुचित विषमता और अस्वाभाविक समता को आश्रय देते हैं, शनि केवल उन्ही को दण्डिंत (प्रताडित) करते हैं।
- शनि
- शनि देव का जन्म
- पौराणिक संदर्भ
- खगोलीय विवरण
- ज्योतिष में शनि
- द्वादस भावों मे शनि
- प्रथम भाव मे शनि
- दूसरे भाव में शनि
- तीसरे भाव में शनि
- चौथे भाव मे शनि
- पंचम भाव का शनि
- षष्ठ भाव में शनि
- सप्तम भाव मे शनि
- अष्टम भाव में शनि
- नवम भाव का शनि
- दसम भाव का शनि
- ग्यारहवां शनि
- बारहवां शनि
- शनि की पहिचान
- अंकशास्त्र में शनि
- अंक आठ की ज्योतिषीय परिभाषा
- शनि के प्रति अन्य जानकारियां
- शनि
- शनि देव का जन्म
- पौराणिक संदर्भ
- खगोलीय विवरण
- ज्योतिष में शनि
- द्वादस भावों मे शनि
- प्रथम भाव मे शनि
- दूसरे भाव में शनि
- तीसरे भाव में शनि
- चौथे भाव मे शनि
- पंचम भाव का शनि
- षष्ठ भाव में शनि
- सप्तम भाव मे शनि
- अष्टम भाव में शनि
- नवम भाव का शनि
- दसम भाव का शनि
- ग्यारहवां शनि
- बारहवां शनि
- शनि की पहिचान
- अंकशास्त्र में शनि
- अंक आठ की ज्योतिषीय परिभाषा
- शनि के प्रति अन्य जानकारियां