शनि देव 1

शनि ग्रह के प्रति अनेक आखयान पुराणों में प्राप्त होते हैं।शनिदेव को सूर्य पुत्र एवं कर्मफल दाता माना जाता है। लेकिन साथ ही पितृ शत्रु भी.शनि ग्रह के सम्बन्ध मे अनेक भ्रान्तियां और इस लिये उसे मारक, अशुभ और दुख कारक माना जाता है। पाश्चात्य ज्योतिषी भी उसे दुख देने वाला मानते हैं। लेकिन शनि उतना अशुभ और मारक नही है, जितना उसे माना जाता है। इसलिये वह शत्रु नही मित्र है।मोक्ष को देने वाला एक मात्र शनि ग्रह ही है। सत्य तो यह ही है कि शनि प्रकृति में संतुलन पैदा करता है, और हर प्राणी के साथ उचित न्याय करता है। जो लोग अनुचित विषमता और अस्वाभाविक समता को आश्रय देते हैं, शनि केवल उन्ही को दण्डिंत (प्रताडित) करते हैं।


अंक आठ की ज्योतिषीय परिभाषा

अंक आठ वाले जातक धीरे धीरे उन्नति करते हैं, और उनको सफ़लता देर से ही मिल पाती है। परिश्रम बहुत करना पडता है, लेकिन जितना किया जाता है उतना मिल नही पाता है, जातक वकील और न्यायाधीश तक बन जाते हैं, और लोहा, पत्थर आदि के व्यवसाय के द्वारा जीविका भी चलाते हैं। दिमाग हमेशा अशान्त सा ही रहता है, और वह परिवार से भी अलग ही हो जाता है, साथ ही दाम्पत्य जीवन में भी कटुता आती है। अत: आठ अंक वाले व्यक्तियों को प्रथम शनि के विधिवत बीज मंत्र का जाप करना चाहिये.तदोपरान्त साढे पांच रत्ती का नीलम धारण करना चाहिये.ऐसा करने से जातक हर क्षेत्र में उन्नति करता हुआ, अपना लक्ष्य शीघ्र प्राप्त कर लेगा.और जीवन में तप भी कर सकेगा, जिसके फ़लस्वरूप जातक का इहलोक और परलोक सार्थक होंगे. शनि प्रधान जातक तपस्वी और परोपकारी होता है, वह न्यायवान, विचारवान, तथा विद्वान भी होता है, बुद्धि कुशाग्र होती है, शान्त स्वभाव होता है, और वह कठिन से कठिन परिस्थति में अपने को जिन्दा रख सकता है। जातक को लोहा से जुडे वयवसायों मे लाभ अधिक होता है। शनि प्रधान जातकों की अन्तर्भावना को कोई जल्दी पहिचान नही पाता है। जातक के अन्दर मानव परीक्षक के गुण विद्यमान होते हैं। शनि की सिफ़्त चालाकी, आलसी, धीरे धीरे काम करने वाला, शरीर में ठंडक अधिक होने से रोगी, आलसी होने के कारण बात बात मे तर्क करने वाला, और अपने को दंड से बचाने के लिये मधुर भाषी होता है। दाम्पत्यजीवन सामान्य होता है। अधिक परिश्रम करने के बाद भी धन और धान्य कम ही होता है। जातक न तो समय से सोते हैं और न ही समय से जागते हैं। हमेशा उनके दिमाग में चिन्ता घुसी रहती है। वे लोहा, स्टील, मशीनरी, ठेका, बीमा, पुराने वस्तुओं का व्यापार, या राज कार्यों के अन्दर अपनी कार्य करके अपनी जीविका चलाते हैं। शनि प्रधान जातक में कुछ कमिया होती हैं, जैसे वे नये कपडे पहिनेंगे तो जूते उनके पुराने होंगे, हर बात में शंका करने लगेंगे, अपनी आदत के अनुसार हठ बहुत करेंगे, अधिकतर जातकों के विचार पुराने होते हैं। उनके सामने जो भी परेशानी होती है सबके सामने उसे उजागर करने में उनको कोई शर्म नही आती है। शनि प्रधान जातक अक्सर अपने भाई और बान्धवों से अपने विचार विपरीत रखते हैं, धन का हमेशा उनके पास अभाव ही रहता है, रोग उनके शरीर में मानो हमेशा ही पनपते रहते हैं, आलसी होने के कारण भाग्य की गाडी आती है और चली जाती है उनको पहिचान ही नही होती है, जो भी धन पिता के द्वारा दिया जाता है वह अधिकतर मामलों में अपव्यय ही कर दिया जाता है। अपने मित्रों से विरोध रहता है। और अपनी माता के सुख से भी जातक अधिकतर वंचित ही रहता है।