भविष्यपुराण के अनुसार शनिदेव को शनि अमावस्या बहुत प्रिय है। जिन लोगों पर साढ़ेसाती, ढैय्या चल रही हो उन्हें इस अमावस्या पर शनि की साधना करनी चाहिए। शनि की शांति के लिए शनि स्तवराज, शनि स्तोत्र और शनि अष्टक का पाठ तथा शनि के मंत्रों का जाप और शनि की वस्तुओं का दान करना चाहिए, क्योंकि शनि अमावस्या का दिन संकटों से समाधान के लिए बहुत शुभ माना गया है।
शनिवार, 18 नवंबर को शनि अमावस्या के दिन एक विशेष शुभ संयोग 'शोभन योग' निर्मित हो रहा है। यह संयोग न केवल शनि दोषों से मुक्ति दिलाएगा, बल्कि जीवन के सभी कष्टों को दूर करने में भी सहायक रहेगा। शनि संबंधी सभी दोषों के निवारण करने में शनि मंत्र विशेष रूप से शुभ रहते हैं। अत: शनि अमावस्या अथवा शनिवार के शनि मंदिर में जाकर इन शनि मंत्रों का स्मरण करना चाहिए।
शनि के चमत्कारिक मंत्र :
* ॐ शं शनिश्चराय नम:
* ॐ धनदाय नम:
* शनि नमस्कार मंत्र - ॐ नीलांजनं समाभासं रविपुत्रम् यमाग्रजम्।
छाया मार्तण्डसंभूतम् तं नमामि शनैश्चरम्।।
* ॐ मन्दाय नम:
* ॐ मन्दचेष्टाय नम:
* ॐ क्रूराय नम:
* ॐ भानुपुत्राय नम:
* तांत्रिक शनि मंत्र-
ॐ प्रां प्रीं प्रौं सः शनैश्चराय नमः
* सिद्ध शनि तैतीसा यंत्र - ॐ प्रां प्रीं प्रौं सः शनैश्चराय नमः
अपार लक्ष्मी प्राप्ति की कामना से इन मंत्रों का जाप करने से घर में सुख-समृद्धि बनी रहेगी तथा आपको मनचाहे धन की प्राप्ति होगी।
शनि देव 2
शनि ग्रह के प्रति अनेक आखयान पुराणों में प्राप्त होते हैं।शनिदेव को सूर्य पुत्र एवं कर्मफल दाता माना जाता है। लेकिन साथ ही पितृ शत्रु भी.शनि ग्रह के सम्बन्ध मे अनेक भ्रान्तियां और इस लिये उसे मारक, अशुभ और दुख कारक माना जाता है। पाश्चात्य ज्योतिषी भी उसे दुख देने वाला मानते हैं। लेकिन शनि उतना अशुभ और मारक नही है, जितना उसे माना जाता है। इसलिये वह शत्रु नही मित्र है।मोक्ष को देने वाला एक मात्र शनि ग्रह ही है। सत्य तो यह ही है कि शनि प्रकृति में संतुलन पैदा करता है, और हर प्राणी के साथ उचित न्याय करता है। जो लोग अनुचित विषमता और अस्वाभाविक समता को आश्रय देते हैं, शनि केवल उन्ही को दण्डिंत (प्रताडित) करते हैं।