मीराबाई के भजन

मीराबाई के भजन


तेरो कोई नहिं रोकणहार मगन हो मीरा चली

तेरो कोई नहिं रोकणहार मगन हो मीरा चली॥

लाज सरम कुल की मरजादा सिरसै दूर करी।
मान-अपमान दो धर पटके निकसी ग्यान गली॥

ऊंची अटरिया लाल किंवड़िया निरगुण-सेज बिछी।

पंचरंगी झालर सुभ सोहै फूलन फूल कली।

बाजूबंद कडूला सोहै सिंदूर मांग भरी।
सुमिरण थाल हाथ में लीन्हों सौभा अधिक खरी॥

सेज सुखमणा मीरा सौहै सुभ है आज घरी।
तुम जा राणा घर अपणे मेरी थांरी नांहि सरी॥